सोचती हूं
क्या सोचता होगा
करम का पर्व मनाने शहर से लौटा
करम के गीतों में मदमस्त
पढ़ा-लिखा एक आदिवासी लड़का
जब कोई उससे पूछता है अचानक
पढ-लिख गए, अब कहां बसोगे?
लौटोगे शहर या फिर लौट आओगे गांव
और वो देखता है
सामने से आती बाढ
शहरों से गांवों की ओर बढ़ती हुई,
वह बाढ़ शहरों की
जो लील रही है गांवों को
और वो आदिवासी लड़का
गांव के किसी टीले पर बैठा
सोचता है अब वह जाएगा कहां ?
कैसे संभलेगा इस बाढ़ में,
उसके पास नही है
अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए
बनायी गई, पूर्वजों द्वारा
शास्त्रो की कोई नाव
बाढ़ से बरबाद होती फसलों को देख
भाग कर बचे गांवों को लूटने की प्रवृति
या ऐसे किसी भी कर्म की जब
हिमायती नहीं रही है उसकी संस्कृति
सोचता है
तब कैसे बचेगी उसकी प्रकृति?
फिर .कैसे बचेगा उसका अस्तित्व?
तभी उसे मिल जाता है
बाढ़ में बहकर आती
करम की एक डाली
जिसके सहारे वह पहुंचता है
अपने अस्तित्व के घर तक
जहां नई शुरूआत की प्रेरणा देता है
शीत से भींगा कोई जावा का फूल,
करम डाली से नापता है हर दिन
वह बाढ़ का पानी
और बाढ़ के बीचो-बीच
गाड़ कर करम डाली
फिर बसा लेता है कोई गांव
शहर की बाढ़ पर बसा, जीवित
एक आदिवासी गांव।।
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जसिन्ता केरकेट्टा
दिनांक . 30/08/2014
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