तिलका मांझी

तिलका माँझी
   (जाबरा पहाड़िया)
     
▪नाम - तिलका माँझी ( मुर्मू )
▪पिता - सुंदरा मुर्मू
▪परिवार - संथाल
▪जन्म - 1750 मे बिहार भागलपुर  निकट तिलकपुर 
▪शहीद - 1785 ई. को भागलपुर में फाँसी दी गई.
▪अन्य - इन्हें जाबरा पहाड़िया नाम से जाना जाता है
▪विशेष - 13 जनवरी 1984 को मैजिस्ट्रेट क्लीव लैंड को अपने तीरों से मार गिराया.
▪संग्राम - अंग्रेजी शासन के खिलाफ संग्राम स्वाधीनता संग्राम प्रथम मशाल जलाने वाले तथा भारतीय स्वाधीनता संग्राम के पहले विद्रोह शहीद
▪विश्वविद्यालय - भागलपुर विश्वविद्यालय का नाम तिलका मांझी के नाम पर रखा गया है.
▪संथाल नियम - संथाल परगना बंदोबस्त नियम (SPT Act ) 1872 ई. में लागु हुआ था.
▪अध्याय काल - 1750 से लेकर 1784

▶ इतिहास को दबाया
भारत के इतिहासमें कई क्रांति हुई है, लेकिन जातिवादी मानसिकता से ग्रस्त इतिहासकारो द्वारा षड्यंत्रपूर्वक इतिहास को दबाया है, या तो तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है. इतिहासकार मोगल औरअंग्रेज के खिलाफ हुए युद्धों को ही स्वाधीनता की लड़ाई कहलाते है. जबकि, आर्यों के आक्रमण के बाद जातिवाद के तहत अपने मुलभुत मानवीय हक़-अधिकार खो बैठे भारत के मूलनिवासी आर्यों की जातिवादी व्यवस्था के खिलाफ 3500 साल से लड़ रहे है. भारत में बौद्ध और जैन विचारधारा का उद्भव भी जातिवाद के खिलाफ क्रांति ही थी.

▶ गलत इतिहास लिखा गया
भारत में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भी कई भारतीयों ने आवाज़ उठाई थी, कई युद्ध हुए, कई लोगो की जाने गई. जब सन १८५७ में तत्कालीन भारतीय गवर्नर लार्ड डलहौजी के ‘डाक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स’ नियम के तहत सतारा, झाँसी, नागपुर और अवध को कंपनी में जोड़ देने की वजह से इन राज्यों ने विद्रोह किया उसी समय मंगल पांडे नाम के ब्रिटिश सैनिक ने ब्राह्मण होने की वजह से एनफील्ड रायफल की गाय के मांस से लदी कार्ट्रिज का विरोध किया, और ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ बगावत कर दी. इसतरह ही 1857 में कंपनी शासन के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत हुई, जिसे भारत का प्रथमस्वातंत्र्य संग्राम कहा गया.. मंगल पांडे का कोर्ट मार्शल करके 8 अप्रिल 1857 को फांसी दे दी गई. और इतिहासकारों ने उसे भारत के स्वातंत्र्य संग्राम का प्रथम शहीद घोषितकर दिया. जबकि अंग्रेजो के खिलाफ जंग की शुरुआत तिलका मांझी के नेतृत्व में संथाल आदिवासीयों ने सन १७७० में कि थी. तिलका मांझी को भारतीय इतिहासकारों की जातिवादी मानसिकता के कारण इतिहास में कहीं जगह नहीं मिली.

▶ स्वाधीनता संग्राम प्रथम मशाल
भारत में स्वाधीनता संग्राम की प्रथम मशाल सुलगाने वाली बिहार की संथाल परगना, भागलपुर छोटा नागपुर के अंचल की जंगली आदिवासी जातियां भले ही इतिहास के पन्नाे में ना मिलती हो, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला देने वाली इन जातियों को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
इन्हीं आदिवासी जातियों में तिलका मांझी का नाम प्रथम विद्रोही के रूप में लिया जाता है। 1857 के भारतीय स्वाधीनता संग्राम के 90 वर्ष पूर्व अंग्रेजी शासन की बर्बरता के जघन्य कार्यों के विरूद्ध उसने आवाज उठायी थी। उसे महान क्रान्तिकारी का अध्याय-काल 1750 से लेकर 1784 तक माना जाता है।

▶ किशोर जीवन
तिलक मांझी का जन्म बिहार राज्य के भागलपुर के निकट तिलकपुर में एक आदिवासी परिवार मे हुआ था। बचपन से ही वह जंगली सभ्यता की छाया में तीर धनुष चलाता, जंगली जानवरों का शिकार करता। कसरत-कुश्ती करना बड़े-बड़े वृक्षों पर चढ़ना-उतरना, बीहड़ जंगलों, नदियों भयानक जानवरों से छेड़खानी, घाटियों में घूमना उसका रोजमर्रा का काम था। जंगली जीवन ने उसे वीर बना दिया था। 

▶ अंग्रेजी सत्ता का अत्याचार
किशोर जीवन से ही अपने-अपने परिवार जाति पर अंग्रेजी सत्ता का अत्याचार देखा था। अनाचार देखकर उसका खून खौल उठता और अंग्रेजी सत्त से टक्कर लेने के लिए उसके मस्तिष्क में विद्रोह की लहर पैदा होती। गरीब आदिवासियों की भूमि, खेती, जंगली वृक्षों पर अंग्रेजी शासक अपना अधिकार किये हुए थे। जंगली आदिवासियों के बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों को अंग्रेज तरह-तरह से यातनाएं देते थे।
आदिवासियों के पर्वतीय अंचल में पहाड़ी जनजाति का शासन था। वहां पर बसे हुए पर्वतीय सरदार भी अपनी भूमि खेती की रक्षा के लिए अंग्रेजी सरकार से लड़ते थे। पहाड़ों के इर्द-गिर्द बसे हुए जमींदार अंग्रेजी सरकार को धन के लालच में खुश किये हुए थे। आदिवासियों और पर्वतीय सरदारों की लड़ाई रह-रहकर अंग्रेजी सत्ता से हो जाती थी और पर्वतीय जमींदार वर्ग अंग्रेजी सत्ता का खुलकर साथ देता था।

▶ अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह शुरू
अंततः वह दिन आ गया, जब तिलक मांझी ने बनैचारी जोर नामक स्थान से अंग्रेजी के विरूद्ध विद्रोह शुरू कर दिया। वीर तिलका मांझी के नेतृत्व में आदिवासी वीरों के विद्रोही कदम भागलपुर, सुल्तानगंज तथा दूर-दूर तक जंगली क्षेत्रों की तरफ बढ़ रहे थे।  तिलका माँझी द्वारा गांव में विद्रोह का संदेश सखुवा पत्ता के माध्यम से भेजा जाता था| राजमहल की भूमि पर पर्वतीय सरदार अंग्रेजी सैनिकों से टक्कर ले रहे थे। स्थिति का जायजा लेकर अंग्रेजी ने क्लीव लैंड को मैजिस्ट्रेट नियुक्त कर राजमहल भेजा। क्लीव लैंड अपनी सेना और पुलिस के साथ चारों ओर देख रेख मे जुट गया। 

▶ मांझी सेना
हिन्दू मुस्लिम में फूट डालकर शासन करने वाली ब्रिटिश सत्ता को तिलका मांझी ने ललकारा। विद्रोही तिलका मांझी अंग्रेजों के विरूद्ध अपने सैन्य दल के साथ विद्रोह कर उठा।
जंगर तराई मे गंगा, ब्रहम्मी आदि नदियों की घाटियों में मांझी अपनी सेना के साथ अंग्रेजी सरकार के सैनिक अफसरों के साथ लगातार संघर्ष करते-करते मुंगेर भागलपुर, संथाल परगना के पर्वतीय इलाकों में छिप-छिप कर लड़ाई लड़ता रहा। क्लीव लैंड एवं सर आधर कूट की सेना के साथ वीर तिलका की कई स्थानों पर जमकर लड़ाई हुई। तिलका सैनिकों से मुकाबला करते-करते भागलपुर की ओर बढ़ गया। वहीं से उसके सैनिक छिप-छिपकर अंग्रेजी सेना पर अस्त्र प्रहार करने लगे। समय पाकर एक ताड़ के पेड़ पर चढ़ गया ठीक उसी समय घोड़े पर सवार क्लीव लैंड उस ओर आया। मांझी ने बिना किसी देरी के तीर धनुष का निशाना उस पर लगाया। धनुष से छूटा तीर क्लीव की छाती में लगा और वहीं उसका प्रणान्त हो गया। क्लीव लैंड की मृत्यु का समाचार पाकर अंग्रेजी सरकार डांवाडोल हो उठी। सत्ताधारियों, सैनिकों अफसरों में भय का वातावरण छा गया।
एक रात तिलका मांझी और उसके क्रान्तिकारी साथी जब एक उत्सव में नाच गाने की उमंग में खोए थे कि अचानक सरदार जाउदाह ने संथाली वीरों पर आक्रमण कर दिया। इस अचानक हुए आक्रमण से तिलका मांझी तो बच गये किन्तु अनेक देश भक्तवीर शहीद हुए। कुछ को बन्दी बना लिया गया। तिलका मांझी ने वहां से भागकर सुल्तानगंज के पर्वतीय अंचल में शरण ली। 

▶ छापामार लड़ाई
भागलपुर से लेकर सुल्तानगंज व उसके आसपास के पर्वतीय इलाकों मे  सेनाओं ने मांझी को पकड़ने के लिए जाल बिछा दिया।
वीर तिलका मांझी एवं उसकी सेना को अब पर्वतीय इलाकों में छिप-छिपकर संघर्ष करना कठिन जान पड़ा, अन्न के अभाव में उसकी सेना भूखों मरने लगी। अब तो वीर मांझी और उसके सैनिकों के आगे एक ही युक्ति थी कि छापामार लड़ाई लड़ी जाये। मांझी के नेतृत्व में संथाल आदिवासियों ने अंग्रेजी सेना पर प्रत्यक्ष रूप से धावा बोल दिया। 

▶ फांसी
युद्ध के दरम्यान मांझी को अंग्रेजी सेना ने घेर लिया। अंग्रेजी सत्ता ने उस महान विद्रोही देशभक्त को बन्दी बना लिया। अंत में एक वटवृक्ष मे रस्से से बांधकर उसे फांसी दे दी।
भारत को गुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेजों के विरूद्ध उसने पहली आवाज उठायी थी, जो 90 वर्ष बाद 1857 में स्वाधीनता संग्राम के रूप में पुनः फूट पड़ी थी।
क्रान्तिकारी तिलका मांझी की स्मृति में भागलपुर में कचहरी के निकट, उनकी एक मूर्ति स्थापित की गयी है, जिसे देखकर उन दिनों की याद ताजा हो आती है जब हम दूसरे के हाथों की कठपुतली बनकर नाचा करते थे। तिलक मांझी भारत माता के अमर सपूत के रूप में सदा याद किये जायेंगे।
तिलका मांझी को भारतीय इतिहासकारों की जातिवादी मानसिकता के कारण इतिहास में कहीं जगह नहीं मिली.

▶ तिलका मांझी चौक
तिलका मांझी जयंती के अवसर पर धनबाद गोविंदपुर रोड पर एनएच 32 पर स्थित गोल बिल्डिंग चौक का नाम अब तिलका मांझी चौक कर दिया गया है। चौक के नामकरण समारोह में वक्ताओं ने राज्य के शहीद म हापुरुषों को अधिक सम्मान दिये जाने  की मांग की। कार्यक्रम का आयोजन बाबा तिलका मांझी स्मारक समिति द्वारा किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता रायमुनी मुर्मू ने की।


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